The learn startup

INTRODUCTION
आपके दिमाग में क्या आता है जब आप Startup सुनते है ? आप शायद किसी गैराज के बैठे हुए चार-पांच दोस्तों के बारे में सोचे जो कोई नया प्रोडक्ट बना रहे हो. एक बड़ा ही exciting venture जिससे खूब प्रॉफिट कमाने की उम्मीद हो. कुछ इसी तरह Silicon Valley में बहुत सी Dot Com कंपनीज शुरू हुई थी. शायद आपको पता हो या नहीं मगर apple company तो ऐसे ही start हुई थी.
पर क्या आपको पता है कि किसी जानी मानी कंपनी के अन्दर भी एक स्टार्ट अप खोला जा सकता है. ये इन्फोर्मेशन और ऐसी कई इंट्रेस्टिंग बाते आपको इस किताब से पता चलेंगी. आज बिजनेस की दुनिया बदलती जा रही है. इसलिए इसको लेकर जो Traditional approach है वो भी बदलनी चाहिए. लीन स्टार्ट अप यही है जो बिजनेस में एक मॉडर्न अप्रोच पेश करता है.
कुछ ऐसे स्टार्ट अप है जिनके बारे में अच्छी प्लानिंग की गयी है.खूब सोच समझ कर प्रोडक्ट चुनकर और मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के साथ. उनके पीछेIntelligent members की टीम भी मौजूद है. मगर इतना टाइम, पैसा और Effort लगाने के बावजूद क्यों ये स्टार्ट अप फेल हो जाते है ? कहाँ कमी रह जाती है? क्या Planning ठीक नहीं होती ?
आप में से कई लोग ऐसे होंगे जो खुद का बिजनेस शुरू करना चाहते होंगे. या फिर आप एक ऐसे बिजनेसमेन है जो कोई नया वेंचर शुरू करना चाहते है ? खैर, आप जो भी हो, ये किताब आपके काम आएगी. अगर आप भी जानना चाहते है कि कैसे स्टार्ट अप से शुरू करके मल्टी मिलियन कंपनी खड़ी की जाए तो आईये यहाँ से शुरू करते है. 

बड़ा सोचे, Lekin Shurwaat Chotte se Kare.
साल 2000 के शुरू में इस किताब के Author Eric Ries ने अपने कालेज के दोस्तों के साथ मिलकर एक स्टार्ट अप शुरू किया था. उनका Product था एक online site जहाँ लोग अपना profilePotential Employers के सामने रख सकते थे. उनका ये Ideaकमाल का था, Team भी बहुत बढ़िया थी और उन्होंने Latest Technology भी इस्तेमाल की थी फिर भी उनका ये Startup फेल हो गया. उनके साथ ही कितने ही और स्टार्ट अप भी डूब गए जब Dot com Companies का बबल फूटा.
Eric Ries सदमे में थे. उन्हें लगा जो कुछ भी उन्होंने सक्सेस स्टोरीज़ के बारे में मेग्जींस में पढ़ा था सब झूठ है. आप चाहे कितना भी हार्ड वर्क कर लो aur kabhi haar na maano फिर भी hum फेल हो सकते है. कुछ सालो बाद एरिक ने सोचा कि शायद् यही पर ज़्यादातर स्टार्ट अप डूब जाते है क्योंकि बहुत से नए प्रोडक्ट चल नहीं पाते है . मगर अपने एक्सपीरिएंस से एरिक को एक ऐसा Guaranteed Process पता चला जिससे कोई भी स्टार्ट अप फेल नहीं हो सकता. इसका एक सही तरीका है जिसे समझकर अगर फॉलो किया जाए तो सक्सेस अचीव की जा सकती है. 2004 में Eric ने एक और स्टार्ट अप को को-फाउन्ड किया था. उनका नया प्रोडक्ट था एक ऑनलाइन प्लेटफार्म जहाँ मेम्बर अपने नए अवतार के साथ अपने दोस्तों से कनेक्ट कर सकते थे.
इस स्टार्ट अप के बारे में जो एक्साइटिंग चीज़ थी वो ये कि इसमें कस्टमर सब कुछ क्रियेट कर सकते थे. कपडे, accesories से लेकर अपने अवतार के लिए फर्नीचर भी. हालांकि ये काम एरिक की टीम के लिए बड़ा चेलेंज था. एक वर्चुएल वर्ल्ड बनाना, अवतार के लिए थ्री डी टेक्नोलोजी का इस्तेमाल करना ये सब बहुत ज्यादा मेहनत का काम था. उन्हें इसमें Payment और Customer के लिए Buying feature device भी क्रियेट करना था.
एरिक की इस नयी कंपनी का नाम I.M.V.U. था. अपने इस नए वेंचर के लिए उन्होंने अपने co-founder के साथ मिलकर एक एक्सपेरिमेंट किया और सब कुछ गलत tareeke se kiya. उन्होंने प्रोडक्ट का early version nikal kar jisme bhaut kamiya thi , ise रिलीज़ कर लिया और हाथो हाथ कस्टमर को बेच दिया. वर्च्युअल वर्ल्ड को परफेक्ट बनाने में इतनी मेहनत करने के bajaye उन्होंने कस्टमर को इसका फीडबैक send करने की छूट दे दी.
उनकी ये अप्रोच बिजनेस के ट्रेडिशनल तरीको के हिसाब से एक बड़ी गलती मानी गयी. हर चीज़ रिलीज़ होने से पहले तैयार होनी चाहिए थी strategyProductMarket Prediction हर चीज़. मगर एरिक का बिजनेस लांच का ये तरीका मोर्डेन बिजनेस की दुनिया में एक नया ट्रेंड बन गया. बिजनेस की दुनिया के नए प्रिंसिपल के लिए yetarika एक बेसिस बन गया है जिसे लीन स्टार्ट अप कहते है. 

लीन स्टार्ट अप क्या है ?
लीन स्टार्ट अप दरअसल एक एक्सपेरिमेंट पर बेस है. इसका मेन आइडिया है कि गलतियों से सीखा जाए. Is tareeke me आप सालो साल प्रोडक्ट को परफेक्ट बनाने में नहीं गुजारते, आपका प्रोडक्ट बिकेगा कि नहीं या कस्टमर कैसा रेपोंसे देंगे ये सोचने में बरसो नहीं लगा देते.
लीन स्टार्ट अप मेथड इस्तेमाल करके कम अमाउंट में भी आप प्रोडक्ट का अर्ली वर्जन निकाल सकते है. फिर आगे ज़रुरत के हिसाब से इसमें चेंज ला सकते है. ye आइडीया है कि इनोवेशन चलती रहे जिससे नया प्रोडक्ट वेस्ट ना हो और मार्किट से बाहर ना हो जाए.
सच कहे तो आज लीन स्टार्ट अप ग्लोबल मूवमेंट बन चूका है. दुनिया भर की कई ओर्गेनाईजेशन ने इसे adopt किया है. इसने बिजनेस की दुनिया में एक नया दौर पैदा कर दिया है. इसे ना सिर्फ नयी कंपनीयों ने ही नहीं बल्कि कई सारी जाने माने एलीट बिजनेसमेन और फोर्च्यून 500 ने भी अप्लाई किया है. मज़ेदार बात है कि एरिक रीज की कंपनी आईएमवीयू ने इससे 2011 में पूरे 50 मिलियन dollars कमाए.

क्या है लीन स्टार्ट अप के प्रिंसिपल ?
लीन स्टार्ट अप मेथड में पांच इम्पोर्टेंट key ideas है. नंबर एक है कि ये ज़रूरी नहीं है कि कोई भी नया बिजनेस आप गैराज से ही शुरू करे. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ से शुरू करते है जब आपने entrepreneur बनने की ठान ही ली है.
एक स्टार्ट अप me pehle se aap kuch bhi predict nhi kar paate. कोई भी ओर्गेनाइजेशन जो नया सर्विस या प्रोडक्ट शुरू करता है वो उसका स्टार्ट अप होता है जब उसे उसके चलने या ना चलने का कोई पक्का भरोसा नहीं होता. लीन स्टार्टअप हर इंडस्ट्री, हर सेक्टर और साइज़ की कंपनी पर अप्लाई हो सकता है.
दुसरे नंबर पर मेनेजमेंट आता है. जब आप स्टार्ट अप की बात करते है तो इसका मतलब सिर्फ प्रोडक्ट से नहीं है. उस प्रोडक्ट को बनाने वाले लोग भी स्टार्ट अप में शामिल होते है. और उन लोगो या उस इंस्टिट्यूट को एक स्पेशल तरीके से मैनेज करने की ज़रुरत पडती है क्योंकि वे उस स्टार्ट अप के बारे में बेहद uncertain है.
नंबर तीसरा है validate learning जिसका मतलब है ऐसे एक्सपेरिमेंट जो बिजनेस में किये जाते है ये जानने के लिए कि उन एक्सपेरिमेंट का नतीजा बिजनेस के ऊपर कैसा पड़ेगा. ये उसी तरह है जैसे कोई Scientific hypothesis होती है और ये एक तरह से ज़रूरी भी है क्योंकि बिजनेस लम्बा टिके यही स्टार्ट अप का गोल होता है. ये सिर्फ कुछ टाइम के लिए प्रॉफिट कमाना नहीं है.
चौथे नंबर पर है BUILD---MEASURE----LEARN. किसी भी स्टार्ट अप के प्राइमरी टास्क होते है आइडीयाज़ से नए प्रोडक्ट बनाना, कस्टमर का फीडबैक measure करना और उस फीडबैक से सीखना कि ये चीज़ आगे चलेगी कि नहीं. यानी To Pivot or PERSEVERE. PIVOT से मतलब है कि मुड़े और कोई दूसरा तरीका सोचे और PERSEVERE का मतलब कि अपने आइडिया को लेकर आगे बड़े और चलते रहे. अगर फीडबैक अच्छा नहीं मिलता तो फिर आपको कोई दूसरा रास्ता लेना पड़ेगा और अगर फीडबैक अच्छा मिलता है तो फिर आगे चलते रहिये.
नंबर पांच है PROGRESS. आपका स्टार्ट अप को बिल्ड-मेज़र-लर्न साइकिल के हिसाब से चलने की आदत होनी चाहिए. फीडबैक मिलते ही इसे अपनी कमीयों पर काम कर लेना चाहिए. एक सस्टेनेबल बिजनेस अचीव करने के लिए अपने किस प्रोसेस par aage badhna haiकरना है ये स्टार्ट अप को पता होना चाहिए.

ZAPPOS (ज़ेप्पोस)
ज़प्पोस शूज़ की एक ऑनलाइन शॉप है. इसकी सबसे बढ़िया बात ये है कि ये कस्टमर फ्रेंडली है. ज़प्पोस सबसे बड़े इंटरनेशल ई-कोमर्स बिजनेस में से एक है. सच तो ये है कि $1 बिलियन एनुअल सेल वाली ये बहुत सक्सेसफुल कंपनी है. लेकिन baaki सारी स्टार्ट अप बिजनेस की तरह ये कंपनी भी बहुत सिंपल तरीके से शुरू हुई थी.
ज़प्पोस के फाउन्डर Nick Swinmurn है. सालो पहले जब मार्किट के अवलेबल हर तरह के जूतों को ऑनलाइन खरीदने के लिए कोई ऑनलाइन शॉप नहीं थी तो निक स्विनमम को बड़ी फ्रस्ट्रेशन होती थी. वे चाहते थे कि कस्टमर को ऑनलाइन बैठे ही बेस्ट शौपिंग एक्सपीरिएंस हो.
स्विनमम प्लानिंग में ही बहुत टाइम लगा सकते थे उन्हें पहले वेयर हाउस से लेकर डिस्ट्रीब्युशन पार्टनर्स और पोटेंशियल सेल्स तक हर चीज़ फिगर आउट करनी चाहिए थी. तब ई-कोमर्स कंपनी खोलने के लिए ये एक ख़ास ट्रेंड हुआ करता था.
मगर फिर भी स्विनमम ने एक्सपेरिमेंट के तौर पर ज़प्पोस शुरू की इस यकीन पर कि लोग ऑनलाइन जूते खरीदने में इंट्रेस्टेड होंगे ya nahi?. उसने सबसे पहले लोकल दूकानदारो से उनके प्रोडक्ट की Pictureलेने की पेर्मिशन मांगी. बदले में स्विनमम उन प्रोडक्ट की पिक्चर अपने वेबसाइट पे डालते जिससे कि कस्टमर उन्हें देख सके. और जब कोई कस्टमर पिक्चर देखकर आर्डर करता तो स्विनमम उसे उस दुकान से खरीद कर कस्टमर को बेच देते.
ज़प्पोस एक सिंपल फंक्शनिंग साईट से शुरू हुई थी. स्विनमम ये देखना चाहते थे कि क्या सच में ऑनलाइन शोपिंग में जूतों की डिमांड है या नहीं. असली कस्टमर से इंटरएक्टिंग करके उन्हें बेस्ट पेमेंट भी मिलती थी और साथ ही रीटर्न और कस्टमर सपोर्ट सिस्टम भी सही ढंग से मैनेज हो जाता था.
ऐसा एक्सपेरिमेंट मार्किट रिसर्च के मुकाबले बहुत अलग है. अगर स्विनमम ने सर्वे किया होता तो उन्हें पता चलता कि कस्टमर की पसंद क्या है. मगर साईट बनाकर उन्हें इससे कई ज्यादा पता चला.
सबसे पहले तो असली कस्टमर के साथ डील करने से उन्हें सर्वे से कहीं ज्यादा एक्यूरेट डेटा मिला. दूसरा उन्हें कस्टमर की एक्च्युअल नीड का पता चला. उन्हें ये भी समझ आया कि ज़प्पोस में डिस्काउंटेड प्राइस भी रखने पड़ सकते है. तीसरा उन्हें कस्टमर के बेहेवियर के हिसाब से डील करने का मौका मिला. उन्होंने रिटर्न इश्यू पर डील करना भी सीखा.
स्विंनमम के एक्सपेरिमेंट से ज़प्पोस को काफी फायदा हुआ. हालांकि कंपनी स्माल स्केल से शुरू हुई थी फिर भी इसने अच्छे रिज़ल्ट दिए. एक ऑनलाइन स्टोर में क्या-क्या होना चाहिए स्विनमम को इस बात की अच्छी नॉलेज हो गयी. और इस तरह ज़प्पोस एक एस्टेबिलीशड ब्रांड बन गया. फिर 2009 में इसे अमेज़न ने $1.2 बिलियन में खरीद लिया.
ज़प्पोस की सक्सेस ने लीन स्टार्ट अप की एफ़ीसियेंसी प्रूव कर दी. इस एक्सपेरिमेंट ने कंपनी का टाइम, एफोर्ट और पैसा तीनो ही बचाया. जूतों का स्टोक जमा करके रखने से पहले स्विनमम आर्डर पक्का कर लेते थे फिर जाकर उन्हें सीधे दुकानदारों से खरीद कर कस्टमर को बेचते थे इस तरह उनके पास अनवांटेड जूतों की कोई इन्वेंटरी नहीं होती थी.
और कस्टमर सर्वे की ज़रुरत भी नहीं पड़ती थी. असली कस्टमर से डील करना ज्यादा सही रहता था. जो भी असली प्रॉब्लम होती थी और कस्टमर के हिसाब से उसे सोल्व करने से कस्टमर सेटीसफेक्शन भी होता था. स्विनमम ने एक नए प्रोडक्ट से शुरुवात की और एक्सपेरिमेंट के ज़रिये ज़प्पोस एक परफेक्ट कस्टमर फ्रेंडली कंपनी बन गयी.
जो सिंपल फंक्शनिंग साईट उन्होंने बनाई उसे मिनिमम वायेबल प्रोडक्ट कहते है.yaani MVP
MVP किसी प्रोडक्ट का इनिशियेल वर्जन होता है. ये सस्ता, इजी और आसानी से डेवलप किया जा सकता है. फिर ये एक्सपेरिमेंट से एक फाइनल प्रोडक्ट में बदल जाता है जो मार्किट के लिए तैयार है.
हम देख सकते है कि किस तरह लीन स्टार्ट अप के प्रिंसिपल पे बेस्ड ज़प्पोस की शुरवात काफी uncertain थी क्योंकि जूते की ऑनलाइन खरीददारी का आइडिया तब किसी के दिमाग में नहीं था. इसके अलावा एक भी जूता बिक जाए इस पर भी स्विनमम को पक्का भरोसा नहीं था.
मगर उन्होंने वेलिडेटिंग लर्निंग अप्लाई किया. स्विनमम ने अपने एक्सपेरिमेंट साईट लांच करके अपने भरोसे को टेस्ट किया. फिर उसने इसमें बिल्ड-मेंज़र-लर्न अप्लाई किया जब उन्हें रियल कस्टमर से डील करना पड़ा. स्विनमम ने ये भी सिखा कि PIVOT या PERSEVEREमें से कौन सी अप्रोच अपनाई जाए जैसे डिसकाउंट और रिटर्न सिस्टम और फिर आखिर में ज़प्पोस एक ससटेनेबल बिजनेस बन ही गया. 

विलेज लांड्री सर्विस
बहुत साल पहले इंडिया में कुछ ही घरो में वाशिंग मशीन हुआ करती थी. क्योंकि ये महँगी होती थी तो केवल 7% लोग ही इसे खरीदना अफोर्ड कर पाते थे. ज़्यादातर लोग अपने हाथो से ही कपडे धोया करते थे या फिर किसी धोबी से या लांड्री सर्विस में धुलवाया करते थे.
धोबी उन कपड़ो को नदी में लेकर जाते थे. पहले किसी पत्थर पर पटक-पटक कर कपडे साफ़ किये जाते फिर नदी के पानी में धोये जाते. इतने कपड़ो को धोने से लेकर सुखाने और इस्त्री करने में धोबी को पूरे दस दिन लगते थे फिर जाकर वो कपडे वापस देता था. और ऐसा नही था कि कपडे फिर भी साफ़ धुलते थे.
अक्षय मेहरा ने इसमें एक अपोर्च्यूनिटी देखी. वे प्रोक्टर और गैम्बल सिंगापोर में 8 साल तक ब्रांड मैनेजर रहे थे. इंडिया और साउथवेस्ट एशिया में पेंटीन और टाइड ब्रांड के पीछे उनका ही दिमाग है. अक्षय मेहरा लोगो को आसान और सस्ती लांड्री सर्विस प्रोवाइड करना चाहते थे.
इंडिया वापस आने पर अक्षय मेहरा ने विलेज लांड्री सिस्टमे के साथ कोलाब्रेट किया. साथ मिलकर दोनों ने बेस्ट बिजनेस अप्रोच जानने के लिए एक्सपेरिमेंट किया. उनका पहला एक्सपेरिमेंट VLS (वीएलएस)ने एक पिक-अप ट्रक में एक वाशिंग मशीन लोड की. वे इस ट्रक को बंगलौर के एक बिज़ी स्ट्रीट में पार्क कर देते थे.
इस पिक-अप ट्रक का आइडीया वीएलएस को बस $8,000 ka पड़ा. सबसे पहले तो उन्हें ये पता करना था कि क्या वाकई में लोग अपने कपडे धुलावाने के लिए उन्हें पैसे देंगे. वैसे कपडे वही सबके सामने ट्रक में लगी मशीन में नहीं धोये जाते थे, वो तो सिर्फ मार्केटिंग पर्पज के लिए था. असल में तो कपडे कहीं और ले जाकर धुलवाए जाते और फिर धुले-धुलाये कपड़े कस्टमर को 24 घंटे में डीलीवर कर दिए जाते थे.
वीएलएस ने वो ट्रक एक हफ्ते तक शहर के अलग-अलग जगहों में पार्क किया ताकि उन्हें कस्टमर के बारे में और ज्यादा पता चल सके की कैसे वे ज्यादा से ज्यादा लोगो को कपडे धुलवाने के लिए एंकरेज करे ? क्या लोगो को फास्टर क्लीनिंग टाइम चाहिए था ? या फिर लोग सफाई को लेकर कंसर्न्ड थे? या किसी कस्टमर की कोई खास रिक्वेस्ट थी ?
वीएलएस को पता चला कि ज़्यादातर कस्टमर को इस बात की फ़िक्र थी कि कहीं ट्रक उनके कपडे लेकर ना भाग जाए. तो इस इश्यू को सोल्व करने के लिए वीएलएस ने ट्रक के बदले कस्टमर फ्रेंडली mobile kiosk इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. अपने दुसरे एक्सपेरिमेंट में वे उस kiosk को एक ग्रोसरी स्टोर के पास ले आये. वीएलएस को ये भी पता लगा कि लोग कपडे सिर्फ धुलवाना ही नहीं बल्कि उन्हें प्रेस भी करवाना चाहते है. और उन्हें ये बात भी मालूम हुई कि कुछ कस्टमर 4 घंटे में धुले प्रेस किये कपड़ो के बदले दुगना पैसा देने को भी तैयार थे.
वीएलएस का ये एक्सपेरिमेंट काफी सक्सेसफुल रहा. बाद में वे एक फाइनल प्रोडक्ट लेकर आये जो 3 फ़ीट बाय 4 फीट का एक मोबाइल कियोस्क था जिसमे एक एफ़ीशियेंट वाशिंग मशीन के साथ एक ड्रायर भी था. ये कपडे धोने के लिए अच्छी क्वालिटी का डीटरजेंट और साफ पानी इस्तेमाल करता था.
इस सक्सेसफुल एक्सपेरिमेंट के बाद बड़े-बड़े शहरो जैसे मुंबई, बंगलौर में विलेज लांड्री सर्विस के कुल 14 मोबाइल कियोस्क चलने लगे. सीईओ, अक्षय मेहरा ने प्राउड्ली कहा” हमने 2010 में कुल 116,000 केजी की सर्विस दी...पीछले साल हमने अपने सभी आउटलेट्स में कुल मिलाकर 10,000 से ज्यादा कस्टमर को सर्विस दी है”
ज़प्पोस की स्टोरी की तरह ही हम देख सकते है कि कैसे लीन स्टार्ट अप का प्रिंसिपल वीएलएस ने भी अप्लाई किया. अक्षय मेहरा भी अपने स्टार्ट अप को लेकर पहले अनसर्टेन थे. उन्हें इस बात का कोई आइडीया नहीं था कि लोग उनकी लांड्री सर्विस का भरोसा करेंगे भी या नहीं.
दूसरी बात, उन्होंने शुरवाती प्रोडक्ट को एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर निकाला. पिक-अप ट्रक उनका एमवीपी यानि मिनिमम वायेबल प्रोडक्ट था जिसमे कोई खास पैसा खर्च नहीं हुआ था ना ही इसे डेवलप करने में ज्यादा टाइम और एफर्ट लगाना पड़ा. वे इस कम लागत वाले रिस्क पे अपने यकीन को आसानी से टेस्ट कर सकते थे.
तीसरी बात, वीएलएस कस्टमर के फीडबैक से बिल्ड-मेंजर-लर्न क्रियेट कर पाया. उन्हें पिक-अप ट्रक से पिवट का आईडिया हुआ और आइरनिंग सर्विस से PERSEVERE का पता चला.
और इस एक्सपेरिमेंट का रिजल्ट ये निकला कि लास्ट में उन्हें ऐसा फाइनल प्रोडक्ट मिला जो कस्टमर की नीड्स पूरी कर रहा था.ये बहुत बड़ी सक्सेस थी जिससे विलेज लांड्री सर्विस एक सस्टेनेबल बिजनेस बन पाया. 
क्या होता अगर वीएलएस मार्किट लौन्चिंग से पहले ही अपना फाइनल प्रोडक्ट बना लेते? क्या होता अगर वे सालो तक परफेक्ट मार्केटिंग स्ट्रेट्रेजी ही प्लान करते रहते? क्या होता अगर उन्होंने प्रोडक्ट शुरू करने से पहले एक सर्वे करवाया होता? ये सब तो बिजनेस के ट्रेडीशनल तरीके है जो किसी भी नए बिजनेस से पहले अपनाए जाते रहे है. मगर ये पुराने तरीके किसी स्टार्ट अप के लिए कभी काम नहीं करते है.
कोई भी नया बिजनेस शुरू करना बहुत अनसर्टेन सिचुएशन होती है. स्टार्ट अप को ना तो प्रोडक्ट में इतना इन्वेस्ट करना चाहिए और ना ही स्ट्रेटीज में इतना टाइम लगाना चाहिए जो सक्सेस की कोई गारंटी नहीं देता. दरअसल जब तक आप असली कस्टमर से डील नहीं करते तब तक आप 100% श्योर नहीं हो सकते है. 
किसी भी नए बिजनेस के लिए बेहतर होगा कि छोटी शुरुवात की जाए. एक्सपेरिमेंट और बिल्ड-मेज़र-लर्न मेथड की मदद से लास्ट में आपको एक परफेक्ट ससटेनेबल प्रोडक्ट मिल जायेगा. 

(GROUPON)  ग्रुप ओन
क्या आपने ग्रुप ओन का नाम सुना है? ये पहली ऑनलाइन साईट थी जो कस्टमर को ग्रुप कूपन प्रोवाइड करती थी. इसकी बढती हुई सक्सेस को देखकर ही कई दूसरी साइट्स ने भी ग्रुप ओंन की नक़ल करनी शुरू कर दी थी. मगर ऐसा नहीं था कि ग्रुपओन् रातो रात चल पड़ी. ग्रुपओन के सबसे पहले कस्टमर थे बीस लोगो का एक ग्रुप जिन्होंने बाई वन टेक वन पिज़्ज़ा कूपन लिए थे.
एंड्रयू मेसन जो इसके फाउन्डर थे पहले इसे सोशल कॉमर्स प्लेटफॉर्म नहीं बनाना चाहते थे.लेकिन मेसन और उनकी टीम ने एक मिनिमम वायेबल प्रोडक्ट क्रियेट किया. तो ये स्टोरी कुछ इस तरह है
ग्रुपओन एक वर्डप्रेस ब्लॉग के तौर पर शुरू हुआ था, मेसन और उनकी टीम रोज़ कुछ न कुछ पोस्ट करती थी उनका पहला ब्लॉग था “ ये टी शर्ट रेड कलर और लार्ज साइज़ में अवलेबल है अगर आप कोई अलग कलर या साइज़ चाहते है तो हमें ई-मेल करे. ग्रुप ओन के पास तब तक ऑर्डर के लिए एक फॉर्म तक नहीं था,
आईडिया बहुत सिंपल था मगर ये काम कर गया. इस एक्सपेरिमेंट से ये पता चल गया कि वाकई में इसकी डिमांड है. बहुत सारे ऐसे कस्टमर थे जिन्हें ग्रुप ओन काम की चीज़ लगा. इसके बाद मेसन और उनकी टीम ने फाइलमेकर प्रोग्राम से असली कूपन बनाये. ग्रुपओन का पहला कूपन एक पीडीफ फॉर्मेट में था. वे इन पीडीफ कूपन्स को सीधे कस्टमर को मेल कर देते थे.
एक दिन उनके पास सुशी के 500 कूपन्स की डिमांड आई. उन्हें ये सारे कूपन्स अपने 500 कस्टमर को पीडीऍफ़ फाइल के साथ मेल करने पड़े. अपने पहले साल में ग्रुपओन कंपनी जैसे तैसे चीज़े मैनेज करने में लगी रही. लेकिन उनके इस सफ़र में वर्डप्रेस ब्लॉग, फाइल मकर पीडीफ और उन 20 पिज़्ज़ा कूपन्स की भी एक ख़ास जगह है. कंपनी की ग्रोथ रिकॉर्ड ब्रेकिंग रही. वे अपने टाइम में $1 बिलियन के बेंचमार्क तक पहुंचने वाली सबसे तेज़ कंपनी बनी. आज ग्रुपओन लोकल बिजनेस को नए कस्टमर ढूढने में मदद करती है. ये दुनिया के अलग-अलग 375 शहरो को स्पेशल अफोर्डेबल डील प्रोवाइड करती है.
मिनिमम वायेबल प्रोडक्ट्स का काम है कस्टमर की डिमांड का पता लगा कर स्टार्ट अप की हेल्प करना. इसलिए एमवीपी सस्ती, ईजी और quickly develop की जा सकती है. इसके थ्रू स्टार्ट अप जल्द ही अपना बिल्ड-मेज़र-लर्न साइकल शुरू कर सकता है.
ट्रेडिशनल तरीके से बिजनेस करने में प्रोडक्ट को एक लम्बे डेवलपमेंट पीरियड से होकर गुज़ारना पड़ता है तब जाकर उसे परफेक्शन मिलती है. मगर एम्वीपी के तरीके ज्यादा इफेक्टिव होते है. ये स्टार्ट अप के लिए बेस्ट प्रोडक्ट डीजाईन बनाने में और टेक्नीकल इश्युज़ समझने में काफी हेल्पफुल है. और सबसे बढ़कर बात है कि MVP (एम्वीपी) बिजनेस और मार्केटिंग स्ट्रेटीज़ से रिलेटेड कई सवालों के ज़वाब देता है.

टोयोटा
Genchi Gembutsu (गेंची गेमबुत्सू) का मतलब है” जाओ और खुद देख लो”. ये मैनेजर्स के लिए है कि बेस्ट डीसीज़न लेने के लिए पहले वे जाये और खुद ही देख ले. यही टोयोटा का कोर प्रिंसिपल है. यहाँ गेंची गेमबुत्सू अपनाना बहुत ज़रूरी है हर चीज़ के लिए, प्रोडक्ट डेवलपमेंट से लेकर, मेन्युफेक्चर, डिस्ट्रीब्यूशन से लेकर सेल्स और पब्लिक अफेयर्स तक. यही टोयोटा का तरीका है काम करने का.
यहाँ मैनेजर्स के पास प्रोब्लम्स सोल्व करने का और कोई रास्ता नहीं है सिवाए खुद जाकर देखने के कि कहाँ दिक्कत है. और यही यूजी योकोवा, सिएना मिनिवेन 2004 के मैनेजर ने भी किया. उन्हें सियेना के कोंसेप्ट मेकिंग से लेकर प्रोडक्शन तक हर चीज़ की देखरेख करने के लिए असाइन किया गया था.
नार्थ अमेरिका में Mini Van की ज्यादा मार्किट है. उस साल योकोवा एक बड़े बिजनेस मूव के लिए तैयार थे. वे यू.एस. के सभी 50 स्टेट्स में रोड ट्रिप के लिए गए. योकोवा ने कैनेडा और मेक्सिको की सभी कंट्रीज का भी चक्कर लगाया. कुल मिलाकर उन्होंने 53,000 माइल्स की दूरी नापी.
हर शहर और टाउन में योकोवा ने सियेना 2003 का मॉडल रेंट पर दिया. वे जानना चाहते थे कि क्या इम्प्रूवमेंट होना चाहिए. उन्होंने मिनिवेन चलाने वाले ड्राईवर्स से बात की और उन्हें ओब्सेर्व भी किया. इससे योकोवा को जो भी जानकारी हासिल हुई वो 2004 मॉडल की सक्सेस के लिए एक खतरा थी.
योकोवा ने कहा” बेशक परेंट्स और ग्रैंड पेरेंट्स मिनिवेन खरीदते है मगर असल में बच्चे ही इसके मालिक होते है. बच्चे इसके पीछे के दो तिहाई हिस्से में कब्ज़ा कर लेते है. और ये बच्चे ही है जो सबसे ज्यादा खतरनाक होते है और नखरीले भी. अगर मैंने अपने ट्रेवल से कुछ सीखा तो यही कि अगली सियेना को किड स्पेशल बनाने की ज़रुरत है.
और इस तरह फिर योकोवा ने सियेना 2004 मिनिवेन के अन्दर के कम्फर्ट के लिए एक बड़ा बजट रखा बच्चो के लिए गाडी में कम्फर्ट होना बहुत ज़रूरी है खासकर कि अमेरिका में जहाँ अक्सर फेमिली रोड ट्रिप्स काफी लम्बी होती है. लेकिन जापान में योकोवा को इस बात का पता नहीं चल पाया क्योंकि वहां लॉन्ग ट्रिप्स उतनी कॉमन नहीं है.
इस नए इम्प्रूव्ड कम्फर्ट फीचर के रिजल्ट बहुत पॉजिटिव थे. मिनिवेन 2004 मॉडल की सेल् 2003 के मॉडल से 60% ज्यादा थी. योकोवा के इस ट्रेवल से एक बहुत बड़ी सफलता हाथ लगी
मैनेजर योकोवा ने गेंची गेम्बुत्सू के इफेक्टिवनेस को प्रूव कर दिया. उन्होंने साबित कर दिया कि वे जो करते है बेस्ट करते है. यही बात स्टार्ट अप में भी अप्लाई होती है. क्योंकि वहां भी खुद जाकर देखने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. एक्सपेरिमेंट बहुत इम्पोर्टेंट है. वे किसी और बिजनेस स्ट्रेटीज़ से ज्यादा इफेक्टिव होते है खासकर किसी नयी कंपनी में.
जब तक आप एम्वीपी अप्लाई नहीं करेंगे और ना ही रियल कस्टमर के साथ एक्सपेरिमेंट करेंगे तब तक आप कस्टमर की पसंद नहीं समझ सकते. एक स्टार्ट अप के लिए यही बेस्ट तरीका है. आपके एक्सपेरिमेंट लम्बे, कॉस्टली या मुश्किल हो ये ज़रूरी नहीं है मगर उनके रिजल्ट इम्प्रेससिवे होते है. 

Conclusion
अच्छा तो आपके पास कोई कमाल का बिजनेस आईडिया है. तो आप भी एम्वीपी क्रियेट करके अपने हाइपोथीसिस को टेस्ट कर लीजिये. ध्यान रहे की आपका मिनिमम वायेबल प्रोडक्ट कोस्टली नहीं होना चाहिए. क्योंकि अभी आपकी शुरुवात ही है तो आप छोटे लेवल से भी शुरू कर सकते है. कम टाइम में एक सिम्पल प्रोडक्ट डेवलप कीजिये
जब आपके पास आपका एमवीपी हो तब आप अपने लर्निंग प्रोसेस से शुरुवात कर सकते है. अब आप एक्पेरिमेंट करना शुरू कर दीजिये और याद रखे अपना बिल्ड-मेज़र-साइकल यानी प्रोडक्ट बनाये, कस्टमर का फीडबैक मेजर करे और उससे सीख ले. फिर आपको पता लग जाएगा कि कौन सा आईडिया पिवट करना है और कौन सा PERSEVERE.
इस बिल्ड-मेजर-लर्न लूप को रिपीट करते रहिये जब तक कि आप अपने सारे अंदाज़े टेस्ट ना कर ले. जब तक आपकी सारी अनसर्टेनिटी दूर ना हो जाए. इस तरह से आप लास्ट में जो प्रोडक्ट बनायेंगे वो आपका बेस्ट फाइनल प्रोडक्ट होगा और वही आपकी बेस्ट बिजनेस Strategy भी.
लीन स्टार्ट अप अप्लाई करके आप सिर्फ प्रॉफिट ही नहीं कमाएंगे बल्कि आप एक सस्टेनेबल बिजनेस भी खड़ा कर लेंगे इस बात की पूरी गारंटी है क्योंकि इसमें आपको असली कस्टमर के साथ डील करने का मौका मिलता है. तो अब से अनसर्टेनीटीज़ को दूर करिए और सक्सेस के रास्ते पर आगे बढिए.

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