The power of your mind

The power of your Subconscious mind



ये किताब ख़ास आपके लिए लिखी गई है आपको ये जानकारी देने के लिए कि आपके सब-कोंशेस दिमाग में इतनी ताकत है जितना आप सोच भी नहीं सकते और इसकी जादुई ताकत से आपको वाकिफ कराना ही इस किताब का मकसद है ताकि आप इसका भरपूर फायदा उठा सके.

आपके अन्दर एक खज़ाना मौजूद है
एक 75 साल की विधवा ने हमारे लेखक को ख़त लिखकर बताया कि वो दुबारा शादी करके घर बसाना चाहती है और खुश रहना चाहती है. उसने वही किया जैसा लेखक ने उसे करने को बोला था. वे औरत खुद को बार-बार याद दिलाती रहती थी कि वो एक खुशहाल शादीशुदा औरत है और अपने पति से बहुत प्यार करती है. और आखिर में एक दिन वो एक बड़े फार्मासिस्ट से मिली और उनसे प्यार कर बैठी. आज दोनों शादीशुदा है और खुश है. आपके अन्दर असल में एक पूरी सोने की खान है जो आपका सब कोंशेस माइंड है. बस अगर आप इसे कण्ट्रोल करके अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना सीख जाए तो क्या बात है ! आप जब किसी टेस्ट से पहले खुद को ये यकीन दिलाते रहते है कि आप फेल हो जायेंगे या फिर कोई चीज़ आपको नहीं मिलेगी तो दरअसल आप अपने ही दिमाग को ऐसा करने के लिए मजबूर कर रहे होते है. आप अपने दिमाग की सुपर पॉवर को गलत आइडिया दे रहे होते है कि आप ये नहीं कर सकते या वो नहीं कर सकते. मगर ऐसा कभी मत कीजिये कभी भी अपने दिमाग में नेगेटिव आईडीया मत आने दे बल्कि पूरे जोश के साथ दोहराते रहे, विश्वास रखे, और उम्मीद भी और फिर आप देख्नेगे कि आपके सब कोंशेस ही आपके सारे सवालो का जवाब बन जाएगा.

अध्याय 2: आपका दिमाग कैसे काम करता है
एक बूड़ी औरत को यकीन हो चला था कि उसकी याददाश्त चली जाएगी मगर उसने अपने दिमाग को यही यकीन दिलाये रखा कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा. बल्कि वे खुद को यकीन दिलाती रही कि उसकी याददाश्त दिन-ब-दिन बढती जा रही है. अब ये उसका मज़बूत विश्वास ही था कि सच में उसके साथ ऐसा ही हुआ. हमारे दिमाग का कोंशेस और सब-कोंशेस हिस्सा एक दुसरे से अलग होने के बावजूद आपस में जुड़े हुए है.जो कुछ आप सोचते है वो अपने कोंशेस मांइड वाले लेवल से सोचते है और जो भी आप करते है छोटी से छोटी चीज़ वे आपके सब-कोंशेस लेवल को अफेक्ट करती है. हालांकि ये समझना ज़रूरी है कि सब-कोंशेस और कोंशेस लेवल दोनों अलग –अलग नहीं है बल्कि एक ही दिमाग के दो अलग लेवल है. कोंशेस माइंड वो है जो सोच-विचार करता है और सब-कोंशेस माइंड आपकी हर सोच पर विश्वास करके उसे अपना लेता है. जो कुछ भी आप सोचते है और करते है उस पर  सब कोंशेस माइंड पूरी तरह यकीन करता है.  उदाहरण के लिए हिप्नोसिस के पीछे सिर्फ एक वजह ये है कि आपका सब कोंशेस माइंड इस पर यकीन करता है और फिर आपसे जो कहा जाता है उसे आपका कोंशेस माइंड बिना kisi zid ke use मानने लगता है. फिर आप चाहे सही या गलत जो भी विचार रखते है उसे ये बेहिचक अपनाने लगता है. तो याद रखिये कि आप अपनी कश्ती के खुद ही मालिक है, सारा कंट्रोल आपके हाथो में है तो सोच समझ कर चुने. अच्छा चुने और अपनी खुशियाँ चुने.

अध्याय 3: आपके सब-कोंशेस दिमाग के काम करने की जादुई ताकत
एक स्कॉच सर्जन, डॉक्टर जेम्स एस्दिले ने कुल 400 ओपरेशन किये. तब तक एनेस्तीथीसिया की खोज नहीं हुई थी jis se vo apne patients ko behosh kar sake. तो उन्होंने आखिर ये किया कैसे ? अपने मरीजों को मेंटल एनेस्तीथीसिया देकर. वे उन्हें पूरी तरह यकीन दिला देते थे कि ओपरेशन में उन्हें किसी भी तरह का दर्द नहीं होगा और ना ही कोई इन्फेक्शन. उनके ओपरेशन सफल हुआ करते थे और उनका मोर्टेलिटी रेट yaani patients ka marne ka rate भी बहुत कम था सिर्फ 2 या 3% ही. अपने मरीजो का ओपरेशन करने से पहले वे उनके सब-कोंशेस माइंड को हिप्नोटिक करके उनके कानो में बोलते थे” तुम्हे कुछ नहीं होगा, तुम ठीक हो जाओगे तुम स्वस्थ हो”
आपका सब-कोंशेस दिमाग आपका सब कुछ कण्ट्रोल करता है, आपके खून का बहाव, आपका digestion और आपके thoughts.एक बार अगर आप इसकी ताकत समझ ले तो इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते है.
जब आप नेगेटिव सोचते है तो वे आपकी डिसट्रकटिव इमोशन होती है जिसे अपने दिमाग से निकालना बेहद ज़रूरी हो जाता है. वर्ना आपकी बॉडी में उल्सर्स, हार्ट प्रोब्लेम्स, एंजाईटी या मेंटल इलनेस जैसे प्रोब्लेम्स होना शुरू हो जायेंगी. अपने दिमाग में उठने वाले हर ख्याल पर गौर करे क्योंकि वही फिर आपके एक्शन बनने लगते है क्योंकि जब भी आप सोचते है जो कुछ सोचते है उसे आपका सब-कोंशेस माइंड रीएक्शन देने लगता है. तो जब भी आप सोये उससे पहले मन में एक इरादा करे, एक टार्गेट चुने और खुद से ही कहे कि आप उसे पूरा करना चाहते है. आप कुछ भी सोच सकते है. अपनी अच्छी सेहत, पैसा या फिर लोगो के साथ अपने रिश्ते के बारे में भी. पोज़िटिव विचारों को आने दे अपने दिमाग को प्रोग्राम करते रहे और फिर इसके Miracles क्या होंगे ये आप सोच भी नहीं सकते है.

अध्याय और 5  मेंटल हीलिंग के पुराने और naye तरीके
1910 का एक मशहूर किस्सा है. एक आदमी को टंग पैरालिसिस हुआ यानि उसकी जीभ को लकवा मार गया. उन दिनों इसका कोई भी इलाज नही था. वो डॉक्टर के पास गया तो उसने उसकी जबान में एक थर्मामीटर रखकर कहा कि ये एक बिलकुल नया इंस्ट्रूमेंट है जिससे उसकी जीभ ठीक हो जायेगी. और सच में कुछ ही मिनटों बाद उसकी जीभ ठीक हो गयी थी और वो उसे हिला-डुला पा रहा था.
बहुत से एक्सपेरिमेंट में हिप्नोसिस किये गए लोगो को आसानी से ये यकीन करा दिया जाता है कि उन्हें कोई ख़ास बिमारी है और फिर वे लोग सच में उसी बीमारी के सिम्पटम्स दिखाने लगते है. क्योंकि उनका सब-कोंशेस दिमाग कही हुई बातो पर यकीन कर लेता है इसमें इतनी ताकत होती है कि वे उसी तरीके से एक्ट भी करने लगता है. ये अपोजिट भी काम करता है जब किसी मरीज़ के सब-कोंशेस दिमाग को यकीन दिलाया जाता है कि वो ठीक हो रहा है. तब ऐसा लगता है कि वो कभी बीमारी का शिकार था ही नहीं. आपके शरीर पर कोई असर तब तक नहीं होगा जब तक आपका सब-कोंशेस माइंड ऐसा करने को ना बोले. हमेशा अपने सब-कोंशेस दिमाग की ताकत को याद रखे. ना जाने आपके जीवन मे इसकी बदौलत कब क्या चमत्कार हो जाए इसलिए कोई भी मौका मिस न करे. 
आज हम सब अपने सब-कोंशेस माइंड की पॉवर से वाकिफ है मगर हममें से बहुत से लोग इसका सही इस्तेमाल करना नहीं जानते है. उन्हें ये पता नहीं होता कि इसकी ताकत से कैसे अपनी जिंदगी को बदला जा सकता है. और ऐसा करने के लिए सबसे पहले तो ये जाने कि आपको क्या चीज़ हील करती है और फिर उसे अपने सब-कोंशेस माइंड को गाइड करने में इस्तेमाल करे. दिमाग में कोई एक प्लान बनाये, उसे काम करता हुआ देखे, फिर बुरे या नेगेटिव ख्याल ना आने दे क्योंकि ऐसा करना बेवकूफी होगी. और आखिरी बात ये कि प्रे करे और अपनी दुवाओ पर यकीन रखे.

अध्याय 6: मेंटल हीलिंग की प्रेक्टिकल टेक्निक :
जब गोल्डन गेट ब्रिज बना तो इंजीनियरिंग कंपनी के पास एक प्लान था. इस प्लान में पहली बार (stresses and strains) स्ट्रेस और स्ट्रेंस की बात कही गयी थी जो ब्रिज पर पड़ सकता था. तब उन्होंने एक मजबूती पूरी तरह से आईडियल ब्रिज के बारे में सोचा और उसे प्रेक्टिकली टेस्ट किया गया. ये सारे स्टेप्स आर्डर में किये गए और कोई भी स्टेप पहले या बाद में नहीं अपनाया गया वर्ना ब्रिज पूरी तरह नाकामयाब रहता.
जिस तरह हमारी दुआए सुनी जाती है वे भी कुछ इसी तरह है. जो हमें मिलता है ना पहले ना बाद में बिलकुल सही वक्त पर ही मिलता है. कुछ चीज़े पहले होनी होती है तो कुछ बाद में. इनमे से सबसे पहली टेक्निक है पास ओवर टेक्निक. सिंपल तरीके से अपने विचारो और इच्छाओ को अपने सब-कोंशेस माइंड में रखते जाए ताकि आप किसी भी तरह की सिकनेस दूर कर पाए. जैसे कि कोई छोटी सी लड़की जिसका गला ख़राब है और बुरी तरह खास रही है वो अगर खुद से मज़बूत इरादे से कहे कि” मेरी बीमारी जा रही है, ये दूर हो रही है” तो घंटे भर बाद ही सच में वो ठीक मह्सूस करने लगेगी.
दूसरी सिंपल टेक्निक है विजुएलाइजेशन टेक्निक. आप विजुएलाइज करके, अपने दिमाग में तस्वीर रच कर ऐसा कर सकते है. जो आप चाहते है उसे हरदम ख्यालो में रखे. आप अपने फोन या लेपटोप पर उसकी वालपेपर लगा कर भी ऐसा कर सकते है या फिर एक ड्रीम बोर्ड भी बना सकते है. या अपने सपने की फोटो कार्डबोर्ड में लगाकर रखे और रोज़ उसे देखे. आखिर में आती है स्लीपिंग टेक्निक जिसमे जब आप सो रहे होते है तो आपकी बॉडी का एफर्ट और स्ट्रेस कम होता है उस वक्त आपका सब-कोंशेस एक्टिव हो जाता है aur आपके विचार और भी बेहतर ढंग से एब्ज़ोर्ब कर लेता है जिससे आपके दिमाग और शरीर को अपनी चाही गयी चीज़ हासिल करने में मदद मिलती है.

इसलिए ऑटो-सजेशन और विजुएलाइज के लिए सोने से बिलकुल पहले का टाइम सबसे बढ़िया रहता है.

अध्याय  7: सब-कोंशेस दिमाग की आदत लाइफवार्ड है
लेखक (Robert Louis Stevenson) रोबर्ट लुईस स्टीवनसन हर रात सोने से पहले कुछ करते थे. वे सोने से पहले अपने सब-कोंशेस माइंड को उन सारी कहानियों से भर देते थे जो उन्हें लिखनी होती थी. और इस तरह वे कहते है कि उनके सब-कोंशेस माइंड की डीप पॉवर उन्हें एक बढ़िया कहानी पूरी तरह तैयार करके देती है जिसे बाद में वे लिख लेते थे. उनकी इस बात से पता चलता है कि हमारी सब-कोंशेस ताकत कितनी जबर्दस्त होती है.
ज़्यादातर बच्चे हेल्दी और स्टोंग पैदा होते है, ये बहुत आम बात है मगर बीमार पड़ना और कमज़ोर होना नार्मल नहीं है क्योंकि ये लाइफ स्ट्रीम के खिलाफ है. सेल्फ-प्रीज़रवेशन हम इंसानों की सबसे स्ट्रोंग इंस्टिक्ट होती है.
फ्रेड्ररेक एलियस एंड्रयूज एक ऐसा लड़का था जिसे पोटस की बिमारी थी जिसे स्पाइन का ट्यूबरक्लूसीस भी कहा जाता है. अपने बीमारी के दौरान वो प्राथना किया करता था कि वो ठीक हो जाएगा और उसकी प्रेयर्स काम आई और वो सच में ठीक होकर एक तन्दुरुस्त इंसान बन गया. सोने से पहले वो उसी स्लीपिंग टेक्निक मेथड का इस्तेमाल किया करता था जिसके बारे में आपको पहले बताया गया था और ये तरीका काम आया. हर ग्यारह महीने में आपका शरीर खुद को रीन्यू करता है. अपने नेगेटिव विचारों को पोजिटिव में बदलिए क्योंकि यही स्ट्रीम ऑफ़ लाइफ है कि हम हेल्दी रहे, स्ट्रोंग बने और बिना किसी नेगेटिविटी, डर, एन्जाईटी और जलन की भावना से दूर रहे क्योंकि ये आपको बहुत सी बीमारियों का शिकार बनाती है तो इन सबसे बचने के लिए हमेशा पोजिटिव सोचे.

अध्याय 8: जो रिजल्ट आप चाहते है उन्हें कैसे पाया जाए
एक बार एक मकान मालिक था जो फरनेस रीपेयरमेन से इस बात पर लड़ रहा था क्योंकि वो एक बायलर को ठीक करने के दो सौ डॉलर मांग रहा था. मकान मालिक ने कहा कि ये बहुत ज्यादा रकम है इस पर रीपेयरमेन ने जवाब दिया कि वो मिसिंग पीस के सिर्फ 5 डॉलर ही मांग रहा है बाकी के 195 dollar तो वो अपनी इस काम की नॉलेज होने की फीस ले रहा है. ठीक इसी तरह आपका सब-कोंशेस माइंड भी बहुत होशियार है जिसमे पास आपके शरीर,मन और आत्मा की हर तकलीफ और दुःख दूर करने के अनेक तरीके है. हमारे फेल होने का एक ज़रूरी वजह होती है कि हमारे अन्दर मोटिवेशन और कांफिडेंस की कमी होती है. क्योंकि जब लोग ध्यान लगाकर कोई प्राथर्ना कर रहे होते है तो कई बार उन्हें उस पर उतना गहरा यकीन नहीं होता जितना कि होना चाहिए. उनके मन में नेगेटिव विचार चलते रहते है और यही वजह है उन्हें अपनी प्राथर्ना का जवाब नहीं मिलता. इसलिए अपने कोंशेस और सब-कोंशेस के बीच कोंफ्लिक्ट दूर करने के लिए सोने से पहले स्लीपिंग टेक्निक का इस्तेमाल करे. अपने सपनों को पूरा होता हुआ देखे बार-बार.


अध्याय और 10 अपने सब-कोंशेस की पॉवर को पैसे और अपने अमीर होने के लिए कैसे इस्तेमाल करे:
लेखक का एक दोस्त सालाना 75,000$ कमाता है yaani lagbhag 55 lakh rupay. वो एक बार दुनिया घूमने के लिए नौ महीने की लम्बी छुट्टी लेकर एक क्रूज़ पर गया. उसने खूब पैसे उड़ाए, मज़े किये और जब वो वापस काम पर लौटा तो उसने kuch mehsus kiya ki unke kayi saathi jo unse business ke baare me zaada jaante the, aur even behtar kaam kar sakte the. Lekin vo saare unse CHOTTI POSITION me hi reh gaye the aur unse kam salary lete the. Aisa kyu tha....Kyunki un sab ko na to अपने सब-कोंशेस की पॉवर के बारे में ना तो कोई नॉलेज थी और ना ही कोई इंटरेस्ट. और इसलिए उनके कोई बड़े सपने भी नहीं थे. ऐसे लोग एक तरह से क्रियेटिविटी से भी कोसो दूर होते है.
सच तो ये है कि कोई भी रातो-रात अमीर नहीं बनता सिर्फ सोचने भर से. इसके लिए आपको सब-कोंशेस माइंड में कुछ नए आइडिया सोचने होंगे, इसे मोटिवेट करना पड़ेगा.  तभी तो ये आपको अमीर बनने में मदद कर पायेगा. इसे मोटिवेशन देते रहे कि आप अमीर है, आप प्रॉफिट कमा रहे है और आपका सब कोंशेस जो नए विचार आपको देगा उन पर काम करना शुरू कर दे. जो आप कहे उसे पर पूरी तरह यकीन करे क्योंकि आपका सब-कोंशेस तभी उन आईडिया को एक्सेप्ट करेगा जब आप अपने कोंशेस माइंड में भी उन्हें एक्सेप्ट करेंगे.
अगर आपको ज्यादा पैसे कमाने की चाहत नहीं है. to Fail होने की राह में यही पहला कदम होगा | सबसे पहले तो ये विचार दिलो-दिमाग से निकाल फेंके कि पैसा सब बुराई की जड़ है. क्योंकि जब आप इसे बुराई मानकर नफरत ही करेंगे तो भला इसे कैसे अपनी तरफ अटरेक्ट कर सकते है. पैसे से नफरत करेंगे तो आपके हाथ कुछ नहीं लगने वाला इसके बदले पैसे को अपना सबसे बड़ा दोस्त समझकर इसे प्यार करे. अपने अमीर होने पर यकीन रखे. जो लोग पैसे की बुराई करते है अक्सर वही किसी ना किसी फिनेंशियल परेशानी से गुज़र रहे होते है. जो ऐसा सोचता है उसके दोस्त जब उससे ज्यादा कमाते है और आगे निकल चुके होते है तो ऐसे लोग जलभुन कर ख़ाक हो जाते है, उनका दिमाग नेगेटिव विचारों से भर जाता है. जिस चीज़ के लिए वो प्रे कर रहे होते है अब उसी को कोसते रहते है. पैसे की ताकत बड़ी है मगर इसे भगवान् ना बनाये. पैसा तो बस सफल होने की एक निशानी है असली खजाना तो आपके दिमाग में छुपा है जो आपके विचार है इसलिए पैसे की कभी भी बुराई ना करे.

अध्याय 11 और 12: आपका सब-कोंशेस माइंड आपकी सफलता का साथी है और देखिये किस तरह साइंटिस्ट इसका इस्तेमाल करते है :
सफल होने के लिए तीन खास स्टेप्स है :
स्टेप 1: अपने पसंद की चीज़े करे जिनसे आपको ख़ुशी मिलती हो, अगर आपको पता नहीं कि वो क्या है तो उसे जानने के लिए पूरे दिल से प्राथर्ना करे.
स्टेप 2: किसी एक ख़ास चीज़ में महारत हासिल करे. जो आपको पसंद हो उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी रखे. जैसे कि ,मान लो आपको डेंटिस्ट का काम पसंद है तो इसकी किसी खास ब्रांच में स्पेशलिस्ट बन जाए जैसे एनडोडॉटिक्स या ओरल सर्जरी या किसी और चीज़ में.
स्टेप 3:  जो भी आपको पंसद हो वो सिर्फ आप तक ना सिमित रहे, सिर्फ आप ही नहीं बल्कि बाकी लोगो के भी काम आये. अपनी पसंद से दुसरो का भी भला करे तो बेहतर होगा.
इन सब स्टेप्स को अपनाते वक्त अपने सब-कोंशेस की पॉवर को कभी ना भूले. बहुत से साइंटिस्ट इस बात को जानते और मानते थे. एडिसन, मार्कोनी, आइनस्टाइन और बाकी बहुत से साइंटिस्ट अपने सब-कोंशेस की आवाज सुनते थे और इसका उन्हें बहुत फायदा भी हुआ. बेहद कामयाब इलेक्ट्रिकल साइंटिस्ट टेस्ला को जब भी कोई आईडिया आता था तो वो अपने ख्यालो में ही उसका इन्वेंशन कर लेते थे. वो जानते थे कि अपने सब-कोंशेस का इस्तेमाल करके वो जो चाहे वो बना सकते है. उनका दिमाग उस पॉइंट पर पहुँच चूका था कि किसी भी डीजायन के इन्वेंशन होने से पहले ही उनके दिमाग को उस डीजायन का डिफेक्ट भी नज़र आ जाता था. इसलिए इन्वेंट करने से पहले ही वे डीजायन इस तरह बनाते थे कि उसमें कोई डिफेक्ट ना रहे जिससे उनका पैसा और वक्त बर्बाद होने से बच जाता था.

अध्याय 13, 14 और 15: आपका सब-कोंशेस और नींद, मेरिटल प्रोब्लेम्स और खुशियाँ:

एक ऐसी टेक्निक है जिसे मै पर्सनली तब अपनाता हूँ जब अगले दिन कुझे कोई काम होता है और मुझे मन में ये डर रहता है कि मै टाइम पर उठ नहीं पाऊंगा. तो मै दिमाग में सोचता रहता हूँ और खुद को यकीन दिलाता हूँ कि सुबह मै टाइम पर उठ जाऊँगा. मै तब तक इस बारे में सोचता रहता हूँ जब तक मेरे सब-कोंशेस माइंड में ये बात पूरी तरह बैठ नहीं जाती. और फिर दुसरे दिन मै एकदम टाइम पर ही उठता हूँ. और ये टेक्निक आजतक फेल नहीं हुई, एक बार भी नहीं. ये बहुत सिंपल टेक्निक है इसमें आपको कोई अलार्म भी नहीं चाहिए हालांकि मै फिर भी अलार्म सेट करके रखता हूँ मगर हमेशा अलार्म बजने से पहले ही मै उठ जाता हूँ जिससे पता चलता है कि सब-कोंशेस माइंड में कितनी पॉवर है.
गाइडेंस का मतलब हमेशा किसी चीज़ से या पैसे की मदद से नहीं होता और ज़रूरी नहीं कि जब आप जागे हुए हो तभी आपको गाइडेंस मिल सकती है, कई बार आपके सपने भी आपको गाइडेंस देते है.
अपने सब-कोंशेस की पॉवर को कभी अनदेखा ना करे. इससे ना सिर्फ आपकी हेल्थ पर बुरा असर पड़ सकता है बल्कि आपकी शादीशुदा जिंदगी पर भी. किसी के साथ जिंदगी भर का सफ़र निभाने के लिए आपका रिश्ता स्प्रिचुअल होना भी ज़रूरी है. जब आप किसी से मुहब्बत किये बगैर सिर्फ पैसे, पोजीशन या अपने ईगो के लिए शादी करते है तो ऐसा रिश्ता कभी सच्चा नहीं होता. ऐसे रिश्ते लम्बे समय तक नहीं टिक पाते है. शादी का बंधन किसी भी चीज़ से ज्यादा स्प्रिचुअल होना चाहिए जहाँ दोनों पार्टनर के दिल एक साथ धडकते हो, जहाँ वे एक होकर जिंदगी के सफ़र में कदम रख सके.
आजकल लोगो का मानना है कि शादी हर प्रॉब्लम का जवाब है. लेकिन असल में ऐसा नहीं है. किसी को अपनाने से पहले आपको इसके लिए पूरी तरह तैयार होना पड़ेगा. अगर आप खुश नहीं है तो अपने पार्टनर को कैसे खुश रख पायेंगे. अपने पार्टनर से ये उम्मीद मत कीजिये कि वे आपको हर ख़ुशी देगा. खुद को खुश रखना आपकी जिम्मेदारी है ना कि किसी और की. अपने सब-कोंशेस को यकीन दिलाये कि आप अधूरे नहीं है,अपने आप में पूरे है. तभी आप किसी और से प्यार कर पायेंगे और शादी की जिम्मेदारी उठा पाएंगे. 
अपनी शादीशुदा जिंदगी में गलतियों को दोहराना एक बहुत बड़ी निशानी है कि आपके मन में नेगेटिव विचार भरे हुए है. आपका सब-कोंशेस माइंड भी इन्ही नेगेटिव विचारों को अपना रहा है. अगर गलती हो गयी है तो उसे स्वीकार करके आगे बड जाए. अपने साथी और अपनी शादी में यकीन रखे ताकि आपका सब-कोंशेस भी यही माने. हमेशा एक बात याद रखे कि शादी शुदा जिंदगी में परेशानियां आना बेहद आम बात है और इसके लिए एक्सपर्ट की सलाह लेने में कोई बुराई नहीं है. जब आपको दांत में दर्द होता है तो क्या आप इंजीनियर के पास जाते है ? नहीं ना. तो आपकी शादी भी आपके दांत के दर्द से कम ज़रूरी मसला नहीं है. जब भी कोई परेशानी आये तो अपने रिश्ते को बचाने के लिए एक्सपर्ट की राय ज़रूर ले. अपने पार्टनर और एक्सपर्ट के अलावा किसी तीसरे के साथ कभी भी अपनी मेरिटल र्पोब्लेम डिस्कस ना करे. 
आपकी खुशियाँ सिर्फ आपके हाथ में है. अगर आप यही सोचते रहेंगे कि आपकी शादी टूटने की कगार पर है तो जानते है क्या होगा? एक दिन ये सच में टूट सकता है. क्योंकि आप ऐसा सोचते है तो आपके सब-कोंशेस को भी यही यकीन होने लगता है. जब आप खुशियों की जगह नेगेटिव सोचंगे तो खुशियाँ कहाँ से पायेंगे ? अब सवाल है कि खुशियाँ कैसे चुनी जाये इसके लिए आपको रोज़ सुबह उठकर खुद से ही दोहराना है कि आपकी जिंदगी उपरवाले की दी हुई है और इसका कण्ट्रोल उसके हाथ में है और वो जो आपके लिय चुनेगा सबसे बढ़िया होगा. जो कुछ भी होगा एकदम बढ़िया होगा और आप हमेशा खुश रहेंगे.

अध्याय 16,17,18 और 19: आपका सब-कोंशेस माइंड और इंसानी रिश्ते, माफ़ करना, मेंटल ब्लोक्स और डर:

Sigmund Freud (सिगमंड फ़्राईड), psychoanalysis(साइकोऐनालिसिस) के ऑसट्रेयन फाउन्डर कहते है कि जब किसी की अंदर प्यार नहीं होता है तो उसकी आत्मा धीरे-धीरे मर जाती है. यही बात गुडविल, रेस्पेक्ट और अंडरस्टेंडिंग के साथ भी है क्योंकि जब आप दिल में नफरत पालते है तो अपनी आत्मा और दिमाग को किसी कैदी की तरह हमेशा के लिए बाँध लेते है.
जितना हो सके सबका भला सोचिये और कोशिश करे कि किसी को भी नुकसान ना पहुंचे. नफरत करने वाला इंसान का हाल वही है जो ज़हर पीता है और सोचता है कि उसे कुछ नहीं होगा.ये पागलपन है क्यों है ना ? तो आप क्यों दुसरो को धोखा देते हो, हर्ट करते हो, उन्हें दुःख देते हो जब आपको पता है कि ऐसा करने से आपके दिमाग में भी ज़हर भर जायेगा, आपका खुद का नुक्सान होगा. लोगो को रेस्पेक्ट दो और उनसे हमेशा अच्छे से पेश आओ जैसा आप खुद के लिए चाहते हो वैसा व्यवहार दुसरो से करो. आप दुसरो के बारे में क्या सोचते है ये सिर्फ आपके हाथ में है, औरो के नहीं. जब आपको कोई तंग करने की कोशिश करता है तो ये आपके हाथ में है कि आप क्या रीएक्शन देंगे, दुसरो की हरकतों से आप क्या महसूस करते है ये भी सिर्फ आपके हाथ में है. अब चाहे आप उस बात से चिढ कर पूरा दिन खराब कर ले या फिर उनकी बातो को इग्नोर करना सीख जाए. उन्हें माफ़ करना सीख जाए. लोगो को माफ़ करना दरअसल दिमाग के लिए नेगेटिव विचारों के खिलाफ एक एंटी-डॉट की तरह काम करता है. जब आप लोगो को माफ़ करते है तो आपकी आत्मा एक शान्ति और सुकून से भर जाती है. और एक तरह से लोगो को माफ़ करके आप लाइफ को पेबैक भी करते है क्योंकि जिंदगी हमेशा आपको मौके देती है. जब कभी गलती से आपकी ऊँगली कट जाती है या पैर पर चोट लग जाती है तो आपका सब-कोंशेस भी कुछ इसी तरह आपको माफ़ करता है, उस चोट को हील करके.
एक आदमी था जो दिन रात इतनी मेहनत करता था कि एक दिन उसे हार्ट प्रॉब्लम हो गयी उस आदमी ने कभी मुश्किल से ही अपने बच्चो के साथ वक्त बिताया था. हमारे लेखक ने उससे बात की. उसने उस आदमी को समझाया कि उसके ऐसा करने की वजह यही है कि उसे अपने बच्चो को वक्त ना देने का दुःख अंदर ही अंदर खाए जा रहा था और दिन रात कड़ी मेहनत करके वो एक तरह से खुद को सजा दे रहा था. उसे खुद को माफ़ करना सीखन होगा तभी वो खुश रह पायेगा.
हम इंसान आदत से लाचार होते है. बुरी आदत और अच्छो आदत के बीच सिर्फ एक चुनाव का फर्क होता है. आप क्या चुनते है ये आपकी मर्जी है चाहे तो आप बुरी आदत अपनाए या अच्छी सब आपके हाथ में है.
बुरी आदत को दूर करने के लिए उसे इग्नोर ना करे. एडमिट करे कि वो आपकी बुरी आदत है और उसे दूर करना है. बहुत से शराबी जिंदगी भर शराब नहीं छोड़ पाते क्योंकि वे मानते ही नहीं कि वे शराबी है. उन्हें शर्म आती है ये मानने में, पछतावा होता है और उनके ईगो को ठेस पहुँचती है और नतीजा ये कि वे कभी भी इससे छुटकारा नहीं पा सकते.
कोई भी आदत अपनाने के लिए पहले खुद को तैयार करना होगा. जब आप इस पॉइंट पर आ जाये कि आपको अपनी कोई बुरी आदत छोडनी ही छोडनी है तो खुद की पीठ थपथपाये  क्योंकि आपने आधा किला फतह कर लिया है.
अपने सब-कोंशेस को कंट्रोल करने की राह में पहला रोड़ा है आपका डर. इसे दूर करने के लिए आप वही कीजिये जिसे करने से आपको सबसे ज्यादा डर लगता है. एक बार एक लेडी एक ऑडीशन देने पहुंची. हालांकि अपने स्टेज फोबिया की वजह से वो तीन बार पहले फेल हो चुकी थी. उसकी आवाज़ में जादू था मगर उसके नेगेटिव ख्याल उसके सब-कोंशेस पर जमे हुए थे और इसीलिए हर बार स्टेज पर जाने के ख्याल से ही वो डर जाती थी. उसने इसका जो इलाज निकाला वो बेमिशाल था. वो खुद को दिन में तीन बार कमरे में बंद कर लेती थी . एक चेयर पर बैठकर रीलेक्स होकर वो अपनी आँखे बंद कर लेती थी. फिर वो खुद में दोहराया करती कि उसके पास गज़ब की आवाज़ है जिसकी बदौलत वो किसी का भी दिल जीत सकती है. वो खुद से दस-दस बार कहती थी कि उसे स्टेज पर डर लगता. जिस दिन उसका ऑडीशन था उसके एक रात सोने से पहले उसने ये टेक्निक दोहराई और कमाल की बात है कि ये काम कर गई. वो ऑडीशन देने के लिए स्टेज पर चढ़ी, बहुत ही ख़ूबसूरती से गाया और लोगो पर अपनी आवाज़ का जादू चला दिया !

अध्याय 20:  जवाँ-दिल कैसे बने रहे हमेशा 
लेखक के एक पडोसी को रिटायर्मेंट इसलिए लेनी पड़ी क्योंकि वे 65 साल के हो गए थे. उस आदमी ने लेखक को कहा कि उसके लिए रिटायर्मेंट किंडरगारटेन से फर्स्ट ग्रेड में जाने जैसा है. उसके लिए ये जिंदगी और विजडम की राह में एक और कदम रखने जैसा है. उसका सोचना कितना सही है. हमे उम्र को इसी तरह लेना चाहिए. उम्र का मतलब सिर्फ सालो का पड़ाव तय करना नहीं है बल्कि अनुभवों और समझदारी के अलग-अलग पडावो से गुजरना है. और यही मरते दम तक चलाना चाहिए कि हम जिंदगी का भरपूर फायदा उठाते रहे. 65 से 95 साल की उम्र के बहुत से साइंटिस्ट ने यही किया है, उन्होंने जिंदगी को भरपूर जिया, अनुभव लिए और बहुत कुछ सीखा.
जिन्हें मरने से, बूडा होने से डर लगता है उनके अक्सर ऑर्गन फेल हो जाते है वे उम्र के नेचुरल प्रोसेस को समझना नहीं चाहते इसलिए मरने से डरते है. जब डर उनपर हावी हो जाता है तो उनके सब-कोंशेस में नेगेटिव विचार जमा होने लगते है जो अपने साथ बहुत सी बिमारियां लाते है.

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